Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -198)
फूलत फूल सवै बन बागन
बोलत मौर बसंत के आवत।
कोयल की किलकारी सुनै सब
कंत बिदेहन तें सब धावत।
ऐसे कठोर महा रसखान जु
नेकुह मोरी ये पीर न पावत।
हक ही सालत है हिय में जब
बैरिन कोयल कूक सुनावत।।
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